
मुजफ्फरनगर में हाईवे पर चलता एक मामूली सा ढाबा, अचानक से राष्ट्रीय राजनीति का मंच बन गया — वजह? एक प्लेट पर लिखा था “पंडित जी वैष्णो ढाबा”, लेकिन अंदर काम कर रहा था “तजम्मुल”, जो खुद को बता रहा था “गोपाल”।
जी हां, जिसने कहा “मैं गोपाल हूं”, वो निकला तजम्मुल। और जिसने कहा “नाम बताओ”, वो बन गया विवादों का बाबा – स्वामी यशवीर महाराज।
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“नाम में क्या रखा है?” – मुजफ्फरनगर में अब सब कुछ!
स्वामी यशवीर जी महाराज ने हाईवे पर कांवड़ियों के लिए ढाबों पर नेम प्लेट अभियान चलाया, जहां कर्मचारियों की धार्मिक पहचान को बोर्ड पर चस्पा करने की ठानी गई। साफ था – अब सिर्फ खाने की प्लेट नहीं, नाम की प्लेट भी जांची जाएगी।
पैंट उतरने की नौबत! मामला बन गया “ऑपरेशन ड्रॉअर”
जब स्वामीजी की टीम एक ढाबे पर पहुंची, तो उन्हें शक हुआ कि ‘गोपाल’ कुछ ज्यादा ही ‘नरम नज़ाकत’ से काम कर रहा है।
फिर क्या था, पहचान की पुष्टि के लिए पैंट उतारने की कवायद शुरू हुई!
गोपाल ने पब्लिक में आकर रोते हुए कहा, “मुझसे मेरी अस्मिता छीनी गई”, लेकिन अब सामने आया कि वो गोपाल था ही नहीं, बल्कि तजम्मुल था।
आधार कार्ड ने फाड़ दिया पर्दा
असली पहचान निकली ‘तजम्मुल’। आधार कार्ड सामने आया। और फिर सोशल मीडिया ने कहा – “आधार है तो स्वीकार है”।
ओवैसी बोले: “ये कांवड़ यात्रा है या नाम करण संस्कार?”
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मामले को धार्मिक असहिष्णुता बताया और स्वामीजी पर निशाना साधा।
उन्होंने कहा, “पहलगाम में जो होता था, अब वो यूपी के ढाबों पर हो रहा है।”
साध्वी प्राची का फटकार टाइप रिएक्शन
साध्वी प्राची ने ओवैसी पर ऐसा तंज कसा कि माइक्रोफोन ने भी कहा – “मुझे माफ करो देवी”।
उन्होंने कहा, “अगर मुस्लिमों को देवी-देवताओं से इतना लगाव है, तो सनातन धर्म अपना लें। गोपाल बनने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
अब हर ढाबे पर मांगा जा रहा है “बायोडाटा”
ढाबों पर अब खाने के साथ “कर्मचारी की जात और धर्म” भी पूछी जा रही है। ग्राहक थाली में दाल मखनी से पहले पूछता है – “भैया ये सर्व कर रहे हैं नरेश हैं या नसीर?”
राजनीति में भी ‘तड़का’ लग गया है
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सपा नेता एसटी हसन ने कहा, “ये ढाबों का NRC है।”
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विश्व हिंदू परिषद ने कहा, “यह तो सिर्फ शुरुआत है, आगे ऑपरेशन सिंदूर 2.0 आएगा।”
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जनता पूछ रही है – “दाल तड़का रहेगा या नेम तड़का ज़्यादा भारी पड़ेगा?”
“नाम बड़े या काम?”
मुजफ्फरनगर के इस नेम प्लेट विवाद ने साफ कर दिया है कि अब धर्म की राजनीति सिर्फ भाषणों तक नहीं, ढाबों की थाली तक पहुंच गई है।
तजम्मुल ने जो गोपाल बनकर किया, वो क्या धोखा था या बचाव?
और क्या हर ढाबे पर अब “धर्म टैग” जरूरी है?
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